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कविता

भारत

नीरज पांडेय


कभी चावल से
कभी भात से
कभी रंग से
कभी मास से
कभी जात से
कभी धर्म से
कभी बोल से
कभी कर्म से
कभी रूप से
कभी चाम से
रोज एक नए नाम से
भारत को पढ़वाया जा रहा है
और हर तीसरे चौथे महीने
बुलंद बुलंद तसवीरों से प्रोफाइल पिक्चर बदली जा रही है
अचरज वाली बात तो ये है
कि भारत को पता ही नहीं है
कि किसी ने हैक कर ली है
आईडी उसकी
वो पासवर्ड बदलना तो चाहता है
लेकिन सामने खड़ी भीड़ से डर जाता है
उसे अच्छे से पता है कि
भीड़ से डरने के दिन चल रहे हैं


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